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[[Category:लम्बी कविता]]
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झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर।
राग अमर! अम्बर में भर निज रोर!
झूमझर झर झर निर्झर-झूम मृदु गरजगिरि-सर में, घर, मरु, तरु-मर्मर, सागर में, सरित-तड़ित-गति-चकित पवन में, मन में, विजन-गहन-कानन में, आनन-आनन में, रव घोर-कठोर-गरज घन घोर।<br>राग अमर! अम्बर में भर निज रोर!<br><br>
झर झर झर निर्झर-गिरि-सर में,<br>अरे वर्ष के हर्ष! घर, मरु, तरुबरस तू बरस-मर्मर, सागर में,<br>बरस रसधार! सरित-तड़ित-गति-चकित पवन मेंपार ले चल तू मुझको,<br> मन मेंबहा, विजन-गहन-कानन में,<br>दिखा मुझको भी निज आननगर्जन-आनन में, रव घोरभैरव-कठोर-<br>राग अमर! अम्बर में भर निज रोरसंसार!<br><br>
अरे वर्ष के हर्ष!<br>उथल-पुथल कर हृदय- बरस तू बरसमचा हलचल-बरस रसधार!<br>पार ले चल तू मुझको, <br>रे चल- बहा, दिखा मुझको भी निज<br>गर्जन-भैरव-संसारमेरे पागल बादल!<br><br>
उथल-पुथल कर हृदय-<br>मचा हलचल-<br>धँसता दलदल चल रे चलहँसता है नद खल्-<br>खल् मेरे पागल बादल!<br><br>बहता, कहता कुलकुल कलकल कलकल।
धँसता दलदल<br>हँसता है नद खल्-खल्<br>बहता, कहता कुलकुल कलकल कलकल।<br><br> देख-देख नाचता हृदय<br>बहने को महा विकल-बेकल,<br>इस मरोर से- इसी शोर से-<br>सघन घोर गुरु गहन रोर से<br>मुझे गगन का दिखा सघन वह छोर!<br>राग अमर! अम्बर में भर निज रोर! <br><br/poem>
[[बादल राग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" / भाग २|अगला भाग >>]]
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