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13:24, 4 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रवीन्द्र प्रभात
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<poem>
दो- तिहाई विश्व की ललकार है हिंदी मेरी -
माँ की लोरी व पिता का प्यार है हिंदी मेरी ।
बाँधने को बाँध लेते लोग दरिया अन्य से -
पर भंवर का वेग वो विस्तार है हिंदी मेरी ।
सुर -तुलसी और मीरा के सगुन में रची हुई -
कविरा और बिहारी की फुंकार है हिंदी मेरी ।
फ्रेंच,इंग्लिस और जर्मन है भले परवान पर -
आमजन की नाव है, पतवार है हिंदी मेरी ।
चांद भी है , चांदनी भी , गोधुली- प्रभात भी -
हरतरफ बहती हुई जलधार है हिंदी मेरी ।
<poem>