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वसंत गीत / गोपाल सिंह नेपाली

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ओ मृगनैनी , ओ पिक बैनी ,
तेरे सामने बाँसुरिया झूठी है !
रग-रग में इतना रंग भरा,
कि रंगीन चुनरिया झूठी है !


मुख भी तेरा इतना गोरा,
बिना चाँद का है पूनम !
है दरस-परस इतना शीतल ,
शरीर नहीं है शबनम !
अलकें-पलकें इतनी काली,
घनश्याम बदरिया झूठी है !


रग-रग में इतना रंग भरा,
कि रंगीन चुनरिया झूठी है !
क्या होड़ करें चन्दा तेरी ,
काली सूरत धब्बे वाली !
कहने को जग को भला-बुरा,
तू हंसती और लजाती !
मौसम सच्चा तू सच्ची है,
यह सकल बदरिया झूठी है !


रग-रग में इतना रंग भरा,
कि रंगीन चुनरिया झूठी है !