956 bytes added,
11:58, 9 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
}}
{{KKCatKavitt}}
<poem>
सुनि सुनि ऊधव की अकथ कहानी कान,
कोऊ थहरानी, कोऊ थानहिं थिरानी हैं ।
कहै रतनाकर रिसानी बररानी कोऊ,
कोऊ बिलखानी, बिकलानी बिथकानी हैं ॥
कोऊ सेद-सानी, कोऊ भरि दृग-पानी रहीं,
कोऊ घूमि-घूमि परीं भूमि मुरझानी हैं ।
कोऊ स्याम-स्याम कै बहकि बिललानी कोऊ,
कोमल करेजौ थामि सहमि सुखानी हैं ॥33॥
</poem>