1,081 bytes added,
06:31, 10 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पद्म क्षेत्री
|संग्रह=
}}
<Poem>
अक्वेरियम में
सपनों की रंग-विरंगी मछलियाँ
तैरती हैं
सारी रात
और प्रात:
घुटता है दम
मछलियों का
औक्सीजन- रहित पानी में .
सचमुच
सपनों की मछलियाँ
सोख लेती हैं
सारा औक्सीजन
और बना देती है विषाक्त
मेरी आँखों के अक्वेरियम का पानी !
फिर प्रात:
उंड़ेलकर सारा बासी पानी
भर लेता हूँ मैं अक्वेरियम
उर:स्थल की नादिका के
अभिमंत्रित जल से !
'''मूल नेपाली से अनुवाद: स्वयं कवि द्वारा''' <Poem>