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11:08, 12 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-२
|संग्रह=जब भी वसन्त के फूल खिलेंगे / आलोक श्रीवास्तव-२
}}
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<Poem>
अपनी ही छाया से डर लगता है
अपने ही स्वप्न
आतंकित करते-से लगते हैं
तुम ज़द में तो हो
पर किसी के ज़द में होने का ख्याल ही
कितना अजीब है
कितना भारी पड़ रहा है
प्यार दिलों-दिमाग़ पर!
</poem>