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06:33, 13 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नोर्जांग स्यांगदेंन
|संग्रह=
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<Poem>
हो न हो यहाँ, शशि, ईश्वर और शैतान
इस श्रृष्टि में
कुछ फर्क नहीं पड़ता मुझे तनिक भी
हो न हो काली रात, गुलाब, बादल और विहान
इस दृष्टि में
कुछ फर्क नहीं पड़ता मुझे थोड़ा भी
हो नहो हुकूमत, पद, दौलत और ईमान
इस मुष्टि में
क्या फर्क पड़ता है यहाँ और भी
हो न हो घनघोर वर्षा, इन्द्रधनुष,बाढ़, रिमझिम गीत
इस वृष्टि में
फर्क नहीं पड़ता है मुझे रत्ती भर
मन न हो तो मेरे संग यहाँ एक ही पल मात्र
यह संसार होने न होने में
फर्क नहीं पड़ता है कितना भी .
'''मूल नेपाली से अनुवाद: बिरख खड़का डुबर्सेली'''
<Poem>