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हाथ आकर लगा गया कोई / कैफ़ी आज़मी
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03:49, 14 फ़रवरी 2010
मैं खड़ा था
के
कि
पीठ पर मेरी
इश्तिहार इक लगा गया कोई
ऐसी मंहगाई है
के
कि
चेहरा भी
बेच के अपना खा गया कोई
अब
बोह
वो
अरमान हैं न वो सपने
सब कबूतर उड़ा गया कोई
Sandeep Sethi
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