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स्वरों का समर्पण / श्रीकांत वर्मा
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15:06, 14 फ़रवरी 2010
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डब्डब
डबडब
अँधेरे में, समय की नदी में
अपने-अपने दिये सिरा दो;
शायद कोई दिया क्षितिज तक जा,
अनिल जनविजय
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