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हर एक चेहरे को ज़ख़्मों का आईना न कहो / राहत इन्दौरी
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05:15, 15 फ़रवरी 2010
ये ज़िन्दगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो|
न जाने कौन सी
मज़बूरीयों
मज़बूरीओं
का क़ैदी हो,
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफ़ा न कहो|
ये इत्तेफ़ाक़ था तुम इस को हादसा न कहो|
ये और बात
के
कि
दुश्मन हुआ है आज मगर,
वो मेरा दोस्त था कल तक उसे बुरा न कहो|
Sandeep Sethi
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