{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार== भेंट कुमार सुरेश}}{{KKCatKavita}}<poem>वह सुबह पाँच बजे उठाकर
मार्निंग वाक पर जाती है
मुझे अच्छ अच्छा लगता है
देर तक सोना
मेरे आफिस का समय
दस बजे का है
मैं देर से लोटता लौटता हूँ घर
उसके सोने का समय हो जाता है
एक दूसरे को पा लेने के भ्रम में
साथ-साथ खिलखिला उठना
बिजली की चमक की तरह होता है
जिसमे जिसमें, कुछ पल के लिए
एक दूसरे को हम
फिर से दूंढ लेते हैं </poem> ==