{{KKGlobal}}==मासूमिअत{{KKRachna|रचनाकार==कुमार सुरेश}}{{KKCatKavita}}<poem>टेबल के इस पार बैठे पहले आदमी की आँखों मैं में एक ढीठ शरारत है
आप इसे चालाकी कह सकते हैं
टेबल के उस पार खड़े दूसरे आदमी
की आँखों में चालाक निरीहपन है
आप इसे काइयापन काईंयापन कह सकते हैं
दूसरे को अपना कोई काम निकलवाना है
दोनों एक दूसरे को आँखों से आजमाते हैं
जैसे डार्विन की 'सरवाईवल आफ़ फिटेस्ट थ्योरी '
का इम्तहान इम्तिहान हो
परस्पर आशंकित हिंसक जानवरों की तरह
पैतरा पैंतरा तोल रहे हैं
तभी एक नौ दस बरस का लड़का
अचानक कुकर का प्रेशर रिलीज हो गया
भाप की चेतावनी बंद हो गयी
दोनों की आँखों मैं में मासूमिअत आ गयी
दो समझदार बच्चे बातें करने लगे
</poem>