चुटकी में नावके-निगाह जुटी भवें कमाँ-कमाँ।
तुझ से यही कहेंगी क्या गुज़री है मुझ पर रात भर
जो मेरी आस्तीं प हैं तेरे ग़मों की सुर्खि़याँ।
हुस्ने-अज़ल की जल्वागाह आईना-ए-सुकूते-राज़
देख तो है अयाँ<ref>स्पष्ट-स्पष्ट</ref>-अयाँ पूछ तो है नेहाँ-नेहाँ।
दूर बहुत ज़मीन से पहुँची है इक किरन की चोट
नीम तबस्सुमे-खफ़ी! रह गयीं पिस के बिजलियाँ।
कितने तसव्वुरात के, कितने ही वारदात के
लालो-गुहर लुटा गया दिल है कि गंजे-शायगाँ<ref>बेहतरीन ख़जाना</ref>।
सीनो में दर्द भर दिया छेड़ के दास्ताने-हुस्न
आज तो काम कर गयी इश्क़ की उम्रे-रायगाँ।
आह फरेबे-रंगो-बू. अपनी शिकस्त आप है’
बाद नज़ारा-ए-बहार, बढ़ गयी और उदासियाँ।
ऐ मेरी शामे-इन्तेज़ार, कौन ये आ गया, लिये
ज़ुल्फो़ में एक शबे-दराज़, आँखों में कुछ कहानियाँ।
मुझको ’फ़िराक़’ याद है, पैकरे-रंगो-बू-ए-दोस्त
पाँव से ता-जबीने-नाज़, महरफ़शाँ-ओ-महचकाँ।
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