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ज़ख्म / गली में आज चाँद निकला

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<poem> तुम आए जो आया मुझे याद, गली में आज चाँद निकला
जाने कितने दिनों के बाद, गली में आज चाँद निकला

ये नैना बिन काजल तरसे, बारह महीने बादल बरसे
सुनी रब ने मेरी फ़रियाद, गली में आज चाँद निकला

आज की रात जो मैं सो जाती, खुलती आँख सुबह हो जाती
मैं तो हो जाती बस बर्बाद, गली में आज चाँद निकला

मैं ने तुमको आते देखा, अपनी जान को जाते देखा
जाने फिर क्या हुआ नहीं याद, गली में आज चाँद निकला ...

</poem>
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