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आकांक्षा / त्रिलोचन
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|संग्रह=चैती / त्रिलोचन
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सुरीली सारंगी अतुल रस-धारा उगल के
कहीं खोई जो थी, बढ़ कर उठाया लहर में,
बजाते ही पाया, बज कर यही तार सब को
बहा ले जाएँगे, भनक पड़ जाए तनिक तो
.
।
</poem>
अनिल जनविजय
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