तुझको देखा है मेरी नज़रों ने तेरी तारीफ़ हो मगर कैसे
के कि बने ये नज़र ज़ुबाँ कैसे के कि बने ये ज़ुबाँ नज़र कैसेना न ज़ुबाँ को दिखाई देता है ना निग़ाहों से बात होती है
तू चली आए मुस्कुराती हुई तो बिखर जाएं हर तरफ़ कलियाँ
तू चली जाए उठ के पहलू से तो उजड़ जाएं फूलों की गलियाँ
जिस तरफ़ तरफ होती है नज़र तेरी उस तरफ़ तरफ क़ायनात होती है
तू निग़ाहों से ना पिलाए तो अश्क़ भी पीने वाले पीते हैं