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[[Category:देशभक्ति]]
<poem>
न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना
मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना
न चाहूं मान दुनिया करुँ मैं कौम की सेवा पडे़ चाहे करोड़ों दुखअगर फ़िर जन्म लूँ आकर तो भारत में, न चाहूं स्वर्ग को जाना ।<br>ही हो आना
मुझे वर दे यही माता रहूं भारत पे दीवाना ।<br><br>लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखुँ हिन्दीचलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना
करुं मैं कौम भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की सेवा पडे चाहे करोडों दुख ।<br>स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना
अगर फ़िर जन्म लूं आकर तो भारत में लगें इस देश के ही हो आना ।<br> <br>अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धनकरुँ मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना
लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूं हिन्दी लिखूं हिन्दी ।<br> चलन हिन्दी चलूं, हिन्दी पहरना, ओढना खाना ।<br><br> भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की ।<br> स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना ।<br><br> लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन ।<br> करुं में प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना ।<br><br> नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम<br>  उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना ।।<br><br/poem>
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