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एक मोअ'म्मा है समझने का / फ़ानी बदायूनी
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04:43, 24 फ़रवरी 2010
<Poem>
एक मोअ'म्मा
<ref>पहेली</ref>
है समझने का ना समझाने का
ज़िन्दगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का
कहीं पाया न ठिकाना तेरे दीवाने का
हर नफ़स उमरे
-
गुज़िश्ता की है मय्यत फ़ानी
ज़िन्दगी नाम है मर मर के जिये जाने का
</poem>
Sandeep Sethi
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