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<poem>
प्रेम-नेम निफल निवारि उर-अंतर तैं,
::ब्रह्मज्ञान आनंद-निधान भरि लैहैं हम ।
कहै रतनाकर सुधाकर-मुखीन-ध्यान,
::आँसुनि सौ धोइ जोति जोइ जरि लैहै हम ॥
आवो एक बार धारि गोकुल-गलि की धूरि,
::तब इहिं नीति को प्रतीत धरि लैहैं हम ।
मन सौं, करेजै सौं, स्रवन-सिर आँखिनि सौं,
::ऊधव तिहारी सीख भीख करि लैं ह्वैं हम ॥18॥
</poem>
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