|संग्रह=घर-निकासी / नीलेश रघुवंशी
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मैंने हाथ उठाया फूल की ओर
 
उसने कहा-- मत जुदा करो मुझे मेरी डाल से
 
उसकी एक न सुनी मैंने
 
तोड़कर रख लिया हथेली पर
 
ख़ून से सन गई है मेरी हथेली
 
काँटों ने बांध लिया है मोर्चा
 
मेरे ख़िलाफ़।
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