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जैसे आग / नीलेश रघुवंशी
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|संग्रह=घर-निकासी / नीलेश रघुवंशी
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तुम कभी सूरज हो
कभी चांद
कभी धरती
कभी आकाश
बांधना मुश्किल है तुम्हें शब्दों में
पानी में नहीं बंधती जैसे आग।
</poem>
अनिल जनविजय
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