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जैसे आग / नीलेश रघुवंशी

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|संग्रह=घर-निकासी / नीलेश रघुवंशी
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तुम कभी सूरज हो
 
कभी चांद
 
कभी धरती
 
कभी आकाश
 
बांधना मुश्किल है तुम्हें शब्दों में
 
पानी में नहीं बंधती जैसे आग।
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