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|संग्रह=
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<poem>उनका हर एक बयान हुआदंगे का सब सामान हुआ
नक्शे पर जो शह्‍र खड़ा हैकातिल का जब भेद खुलादेख जमीं पे बियाबान हाकिम मेहरबान हुआ
झोंपड़ ही तो चंद जले हैंकोना-कोना चमके घरऐसा भी क्या तूफ़ान वो जबसे मेहमान हुआ
कातिल का जब से भेद खुलाबस्ती ही तो एक जलीहाकिम क्यूं मेहरबान ऐसा क्या तूफ़ान हुआ
कोना-कोना घर का चमकेहै प्यास बुझी जब से वो मेहमान सूरज कीदरिया इक मैदान हुआ
आँखों में सनम की देख जराउनका एक इशारा भीकत्ल रब का मेरे उन्वान ज्यूँ फ़रमान हुआ
एक जब से हरी वर्दी जो पहनीये दिल मेरा हिन्दुस्तान हुआ</poem>
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