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कभी चमकतीसुबह कोअभी-अभी माँजे गए बासन-सीकुछ और सुबह करतेसँवर जाती कभी बिस्तर पर एक भीरात कोसिल्बत बिन बिछी चादर-की-सीकुछ और गहरातेदोपहर की धूप मेंमर्द जीता हैसूखते कपड़ों सँग सूखतीअर्गनी पर टँगी धोती सँग झूलतीहँसती नन्हें के टूटे दस्तों सब कुछ के बीच में सेखिलखिलाती चुटकुला कहती गुड़िया कीगुज़रते हुए इत्मिनान से बरबस रोकी मुस्कानों में ***बतियाती घर के बोलने मेंउजाले / अँधेरे सेहँसने में हँसतीलुका-छिपी करतीरोने में बिसूरतीसब कूच को बससूरज-सी पहुँचती हर कोने अन्तर तकछू कर निकल जातीहोती पर-पलघर-आँगन कीपानी पर अपने होने सेबनी लकीरें मिटातीकहीं नहीं होतीऔर भीअपने को चीन्हतीजी ही लेती हैकहीं नहीं पहुँचती
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