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02:21, 8 मार्च 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बुल्ले शाह
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[[Category:पंजाबी भाषा]]
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<poem>
अब हम गुम हुए प्रेम नगर के शहर
अपने आप को जांच रहा हूँ
ना सर हाथ ना पैर
हम धुत्कारे पहले घर के
कौन करे निरवैर!
खोई खुदी मनसब पहचाना
जब देखी है खैर
दोनों जहां में है बुल्ला शाह
कोई नहीं है गैर
अब हम गुम हुए प्रेम नगर के शहर
'''मूल पंजाबी पाठ'''
अब हम गम हुए प्रेम नगर के शहर
अपने आप नूं सोध गिआ हाँ
ना सर हाथ ना पैर
लथ्थे पगड़े पहले घर थीं
कौन करे निरवैर!
खुदी खोई अपना पद चीता
तब होई गल्ल खैर
बुल्ला शाह है दोहीं जहानीं
कोई ना दिसदा गैर
अब हम गुम हुए प्रेम नगर के शहर
</poem>