Changes

{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ग़ालिब|संग्रह= दीवान-ए-ग़ालिब / ग़ालिब
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किये हुए
जोश-ए-क़दह<ref>प्यालों की भरमार से</ref> से बज़्म-ए-चिराग़ां किये हुए
मुद्दत हुई है यार करता हूँ जमा फिर जिगर-ए-लख़्त-लख़्त<ref>ज़िगर के टुकड़ों को महमाँ किये हुए <br/ref>को जोशअर्सा हुआ है दावत-ए-क़दह से बज़्म चराग़ाँ किये हुए मिज़गां<brref>पलकों की दावत(जो जिगर खिलाकर की जाती है)<br/ref>किये हुए
करता हूँ जमा फिर जिगरवज़ा-ए-लख़्त-लख़्त को <br>एहतियात से रुकने लगा है दम अर्सा हुआ है दावत-ए-मिज़्श्गाँ बरसों हुए हैं चाक गिरेबां किये हुए <br><br>
फिर वज़ागर्म-नाला हाये-एहतियात शररबार<ref>आग बरसाने वाले से रुकने लगा है दम आर्तनाद में लीन<br/ref>है नफ़स बरसों हुए हैं चाक गिरेबाँ किये हुए मुद्दत हुई है सैर-ए-चिराग़ां<brref>दीपोत्सव की सैर<br/ref>किये हुए
फिर गर्मनाला हाये शररबार है नफ़स पुर्सिश-ए-जराहत-ए-दिल<brref>मुद्दत हुई दिल के घाव का हालचाल पूछना</ref> को चला है सैरइश्क़ सामान-ए-चराग़ाँ किये हुए सद-हज़ार-नमकदां<brref>लाख़ों नमकदान लिए हुए<br/ref>किये हुए
फिर पुर्सिशभर रहा है ख़ामा-ए-जराहतमिज़गां<ref>पलकों की लेखनी</ref> ब-ख़ून-ए-दिल को चला है इश्क़ <br>सामाँसाज़-ए-सदहज़ार नमकदाँ किये हुए चमन-तराज़ी-ए-दामां<brref>दामन पर फूलों के चमन खिलाने का प्रबंध<br/ref>किये हुए
फिर भर रहा हूँ ख़ामा-ए-मिज़्श्गाँ बाख़ून-ए-दिलबाहमदिगर<brref> साज़आपस में</ref> हुए हैं दिल--चमनतराज़ीदीदा फिर रक़ीब नज़्ज़ारा--दामाँ ख़याल का सामां किये हुए <br><br>
बाहमदिगर हुए हैं दिलफिर तवाफ़--दीदा फिर रक़ीब कू-ए-मलामत<brref>प्रेयसी की गली(जहाँ धिक्कार मिलता है)</ref> को जाये है नज़्ज़ारा-ओ-ख़याल पिंदार<ref>अहम</ref> का सामाँ किये हुए सनम-कदा<brref>देवालय<br/ref>वीरां किये हुए
दिल फिर तवाफ़शौक़ कर रहा है ख़रीदार की तलब अर्ज़-ए-कू-मताअ़ ए-मलामत को जाये है अ़क़्ल-ओ-दिल-ओ-जां<brref>पिंदार बुद्धी, ह्रदय और प्राणों का सनमकदा वीराँ किये हुए समर्पण<br><br/ref>किये हुए
दौड़े है फिर शौक़ कर रहा है ख़रीदार की तलब <br>अर्ज़-ए-मता-ए-अक़्लहरेक गुल-ओ-दिल-ओलाला पर ख़याल सद-जाँ गुलसितां निगाह का सामां किये हुए <br><br>
दौड़े है फिर हर एक गुलचाहता हूँ नामा--लाला पर ख़याल दिलदार<brref>सदगुलसिताँ निगाह प्रियतम का सामाँ किये हुए पत्र<br><br/ref>खोलना जां नज़र-ए-दिलफ़रेबी-ए-उन्वां किये हुए
माँगे है फिर चाहता हूँ नामाकिसी को लब-ए-दिलदार खोलना बाम<brref>होठों पर</ref> पर हवस<ref>तीव्र लालसा</ref>जाँ नज़रज़ुल्फ़-ए-दिलफ़रेबी-ए-उन्वाँ किये हुए सियाह रुख़ पे परेशां<brref>कोली ज़ुल्फ़ें चेहरे पर बिखेरे हुए<br/ref>किये हुए
माँगे है चाहे फिर किसी को लब-ए-बाम पर हवस मुक़ाबिल<brref>(अपने) सामने</ref> में आरज़ूज़ुल्फ़सुर्मे से तेज़ दश्ना-ए-सियाह रुख़ पे परेशाँ किये हुए मिज़गां<brref>पलकों की कटार<br/ref>किये हुए
चाहे फिर किसी को मुक़ाबिल में आरज़ू इक नौबहार-ए-नाज़<brref>जवानी की बहार</ref> को ताके है फिर निगाह सुर्मे से तेज़ दश्नाचेहरा फ़ुरोग़-ए-मिज़्श्गाँ मै से गुलिस्तां किये हुए <br><br>
इक नौबहारफिर जी में है कि दर पे किसी के पड़े रहें सर ज़रे-बार-ए-नाज़ को ताके है फिर निगाह <br>चेहर फ़ुरोग़मिन्नत-ए-मै से गुलिस्ताँ दरबां किये हुए <br><br>
फिर जी में ढूँढता है फिर वही फ़ुर्सत, कि दर पे किसी के पड़े रात दिन बैठे रहें <br>सर ज़ेर बारतसव्वुर-ए-मिन्नत-ए-दर्बाँ किये हुए जानां<brref>प्रेयसी की कल्पना<br/ref>किये हुए
जी ढूँढता है फिर वही फ़ुर्सत के रात दिन <br>बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किये हुए <br><br> "ग़ालिब" हमें न छेड़ कि फिर जोश-ए-अश्क से<brref> आँसुओं का उबाल</ref> से बैठे हैं हम तहय्या-ए-तूफ़ाँ तूफ़ां<ref>तूफ़ान बरपा करने का दृढ़ निश्चय</ref> किये हुए <br><br/poem>{{KKMeaning}}
Delete, Mover, Uploader
894
edits