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मैं और मिरी आवारगी / जावेद अख़्तर
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19:00, 8 मार्च 2010
हम भी कभी आबाद थे ऐसे कहाँ बरबाद थे<br>
बिफ़िक्र
बेफ़िक्र
थे आज़ाद थे मसरूर थे दिलशाद थे<br>
वो चाल ऐसि चल गया हम बुझ गये दिल जल गया<br>
निकले जला के अपना घर मैं और मेरी आवारगी<br><br>
Raviranjankumar
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