गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
भूख इन्सान के रिश्तों को मिटा देती है / मासूम गाज़ियाबादी
3 bytes removed
,
20:11, 13 मार्च 2010
<poem>
भूख इन्सान के रिश्तों को मिटा देती है।
करके
न्ण्गा
नंगा
ये सरे आम नचा देती है।।
आप इन्सानी
जफ़ओं
जफ़ाओं
का गिला करते हैं।
रुह भी ज़िस्म को इक रोज़ दग़ा देती है।।
अनिल जनविजय
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,621
edits