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{{KKRachna
|रचनाकार= ग़ालिब
|संग्रह= दीवान-एदीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
डरे क्यों मेरा क़ातिल, क्या रहेगा उसकी गर्दन पर
वो ख़ूँ, जो चश्मे-तर<ref>भीगी आँख</ref> से उम्र यूँ दम-ब-दम<ref>प्राय:, बार-बार</ref> निकले
निकलना ख़ुल्द<ref>स्वर्ग</ref> से आदम<ref>पहला मानव</ref> का सुनते आये थे लेकिन
बहुत बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले
अगर उस तुर्रा-ए-पुर-पेच-ओ-ख़म<ref>बल खाए हुए तुर्रे का बल</ref> का पेच-ओ-ख़म निकले
हुई इस दौर में मंसूब<ref>आधारित</ref> मुझ से बादा-आशामी<ref>शराबनोशी,मदिरापान</ref>
फिर आया वह ज़माना जो जहां में जाम-ए-जम<ref>जमदेश बादशाह का पवित्र मदिरापात्र </ref> निकले
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