835 bytes added,
11:49, 16 मार्च 2010 {{KKGlobal}}
{{KKरिश्ते
|रचनाकार=संध्या पेडणेकर
}}
<poem>
स्नेह नहीं
शुष्क काम है
लपलप वासना है
क्षणभंगुर
क्षण के बाद रीतनेवाली
मतलब से जीतनेवाली
रिश्तेदारी है
खाली घड़े हैं
अनंत पड़े हैं
उनके अन्दर व्याप्त अन्धःकार
उथला है पर
पार नहीं पा सकते उससे
अन्धःकार से परे कुछ नहीं
उजास एक आभास है
क्षितिज कोई नहीं
केवल
आकाश ही आकाश है
</poem>