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19:54, 16 मार्च 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राहत इन्दौरी
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>ये सानेहा तो किसी दिन गुजरने वाला था
मैं बच भी जाता तो इक रोज मरने वाला था
तेरे सलूक तेरी आगही की उम्र दराज़
मेरे अज़ीज़ मेरा ज़ख्म भरने वाला था
बुलंदियों का नशा टूट कर बिखरने लगा
मेरा जहाज़ ज़मीन पर उतरने वाला था
मेरा नसीब मेरे हाथ काट गये वर्ना
मैं तेरी माँग में सिंदूर भरने वाला था
मेरे चिराग मेरी शब मेरी मुंडेरें हैं
मैं कब शरीर हवाओं से डरने वाला था