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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार विनोद
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<poem>
जीवन है इक दौड़ सभी हम भाग रहे हैं
बिस्तर पे काँटों के हम सब जाग रहे हैं

कागज़ की धरती पर जो बन फूल खिलेंगे
वही शब्द सीनों मे बन कर आग रहे हैं

हर कोई पा ले अपने हिस्से का सूरज
कहाँ सभी के इतने अच्छे भाग रहे हैं

वो जीवन मे सुख पा लेते भी तो कैसे
जिनको ड़सते इच्छाओं के नाग रहे हैं

रंगों से नाता ही मानो टूट गया हो
अपने जावन मे ऐसे भी फाग रहे हैं
</poem>
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