गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
खुलेगी इस नज़र पे / परवीन शाकिर
3 bytes removed
,
15:42, 25 मार्च 2010
सो झुकता जा रहा है अब ये सर आहिस्ता आहिस्ता<br><br>
मेरी शोलामिज़ाजी को वो
जन्गल
जंगल
कैसे रास आये<br>
हवा भी साँस लेती हो जिधर आहिस्ता आहिस्ता<br><br>
द्विजेन्द्र द्विज
Mover, Uploader
4,005
edits