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मेरा अख़बार / कुमार सुरेश

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[[मेरा अखबार]]
<poem>उगते सूरज के गुलाबी प्रकाश में नहाया
स्याह अक्षरों से भरा अखबार
गिरता है घर के दरवाजे पर

पहला पेज खोलते ही
परोसने लगता है डरावनी खबरें
करता है
क्रांति का आह्वान
बाज़ार और कामुकता
के पक्ष में
पन्ना पलटते ही
पूँजी का चाटुकार
कोई उपभोक्ता वस्तु
खरीदने को कहता है
हिंदी का मेरा अखबार
पिछड़ा बता हिंदी को
हिंगलिश सीखने की करता वकालत

बन जाता है
वास्तु-शास्त्र, ज्योतिष
लाल किताब का आचार्य
कामोत्तेजक दवाईओं का धनवंतरी
अपराध की दुनिया का शेरलैक होल्म्स
हॉलीवुड बॉलीवुड हीरोइनों के
प्रेम, अभिसार और गर्भधारण का वात्स्यायन

जब मेरी किशोर बेटी इसे पढने बैठती है
मैं सहम कर दूर हट जाता हूँ
वह किसी अश्लील विज्ञापन का निहितार्थ
भोलेपन से पूछ न ले

दम तोडती सभ्यता का लेखा-जोखा होगा
सुदूर भविष्य में किसी दिन
तब तुम्हारी भी जवाबदेही तय होगी मेरे अख़बार में
</poem>