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{{KKRachna
|रचनाकार= जावेद अख़्तर
|संग्रह= तरकश / जावेद अख़्तर
}}
[[Category:ग़ज़ल]]<poem>फिरते हैं कब से दरबदर दर-बदर अब इस नगर अब उस नगर<br>एक इक दूसरे के हमसफ़र मैं और मेरी मिरी आवारगीनाआश्ना<brref>अपरीचित</ref>ना आशना हर रहगुज़र ना मेहरबाँ है एक नामेहरबां हर इक नज़र<br>जायें जाएँ तो अब जायें जाएँ किधर मैं और मेरी मिरी आवारगी<br><br>
हम भी कभी आबाद थे ऐसे कहाँ बरबाद थे<br>बेफ़िक्र थे आज़ाद थे मसरूर <ref>प्रसन्न</ref> थे दिलशाद थे<brref>दिल से खुश</ref> थेवो चाल ऐसि ऐसी चल गया हम बुझ गये दिल जल गया<br>निकले जला के जलाके अपना घर मैं और मेरी मिरी आवारगी<br><br>
वो माह-ए-वश वो माह-ए-रूह वो माह-ए-कामिल हूबहू<br>जीना बहुत आसान था इक शख़्स का एहसान थाथीं जिस की बातें कूबकू उस से अजब थी गुफ़्तगू<br>हमको भी इक अरमान था जो ख़्वाब का सामान थाअब ख़्वाब हैं न आरज़ू अरमान है न जुस्तजूफिर यूँ हुआ वो खो गई और मुझ को ज़िद सी हो गई<br>लायेंगे उस को ढूँड कर भी चलो ख़ुश हैं मगर मैं और मेरी मिरी आवारगी<br><br>
ये दिल ही था जो सह गया वो बात ऐसी कह गयामाहवश<brref>कहने को फिर क्या रह गया अश्कों का दरिया बह गयाचाँद जैसी<br/ref>जब कह कर वो दिलबर गया ती लिये मैं मर गयामाहरू<brref>चाँद जैसे चेहरेवाली</ref> वो माहे कामिल<ref>पूरा चाँद</ref> हू-बहूथीं जिस की बातें कू-बकू<ref>गली-गली</ref> उससे अजब थी गुफ़्तगूफिर यूँ हुआ वो खो गई तो मुझको ज़िद सी हो गईरोते हैं लायेंगे उस को रात भर ढूँढकर मैं और मेरी मिरी आवारगी<br><br>
अब ग़म उठायें किस लिये ये दिल जलायें किस लिये<br>ही था जो सह गया वो बात ऐसी कह गयाआँसू बहायें किस कहने को फिर क्या रह गया अश्कों का दरिया बह गयाजब कहके वो दिलबर गया तेरे लिये यूँ जाँ गवायें किस लिये<br>पेशा न हो जिस का सितम ढूँढेगे अब ऐसा सनम<br>मैं मर गयाहोंगे कहीं तो कारगर रोते हैं उसको रात भर मैं और मेरी मिरी आवारगी<br><br>
आसार हैं सब खोट के इम्कान हैं सब चोट के<br>अब ग़म उठायें किसलिये आँसू बहाएँ किसलियेघर बन्द हैं सब कोट के ये दिल जलाएँ किसलिये यूँ जाँ गवायें किसलियेपेशा न हो जिसका सितम ढूँढेगे अब ख़त्म है सब टोटकेऐसा सनमहोंगे कहीं तो कारगर<brref>क़िस्मत का सब ये खेल है अंधेर ही अंधेर हैसफल<br/ref>ऐसे हुए हैं बेअसर मैं और मेरी मिरी आवारगी<br><br>
आसार हैं सब खोट के इमकान<ref>संभावना</ref> हैं सब चोट केघर बंद हैं सब गोट के अब ख़त्म है सब टोटकेक़िस्मत का सब ये फेर है अँधेर ही अँधेर हैऐसे हुए हैं बेअसर मैं और मिरी आवारगी जब हमदम-ओ-हमदमो हमराज़ था तब और ही अन्दाज़ था<br>अब सोज़ <ref>दर्द</ref> है तब साज़ <ref>बाध्य</ref> था अब शर्म है तब नाज़ था<br>अब मुझ से मुझसे हो तो हो भी क्या है साथ वो तो वो भी क्या<br>एक इक बेहुनर एक बेसबर इक बेसमर<ref>निष्फल</ref> मैं और मेरी मिरी आवारगी<br><br/poem>{{KKMeaning}}
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