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आप भी आइए / जावेद अख़्तर

36 bytes added, 13:31, 30 मार्च 2010
|रचनाकार=जावेद अख़्तर
}}
[[Category:ग़ज़ल]]<poem>आप भी आइए, हम को हमको भी बुलाते रहिए दोस्‍ती ज़ुर्म नहीं, दोस्‍त बनाते रहिए।
ज़हर पी जाइए और बाँटिए अमृत सबको
 
ज़ख्‍म भी खाइए और गीत भी गाते रहिए।
वक्‍त ने लूट लीं लोगों की तमन्‍नाएँ भी,
 ख्‍वाब ख़्वाब जो देखिए औरों को दिखाते रहिए।
शक्‍ल तो आपके भी ज़हन में होगी कोई,
 कभी बन जाएगी तसवीर, बनाते रहिए।</poem>
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