{{KKRachna
|रचनाकार=जावेद अख़्तर
|संग्रह= तरकश / जावेद अख़्तर
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[[Category:ग़ज़ल]]<poem>
शाम होने को है
लाल सूरज समन्दर समंदर में खोने को है और उसके परे कुछ परिन्दे कतारें क़तारें बनाए उन्हीं जंगलों को चले, जिनके पेड़ों की शाखों शाख़ों पे हैं घोसलेघोंसलेये परिन्दे वहीं लौट कर जाएँगे, और सो जाएँगे हम ही हैरान हैं, इस मकानों के जंगल में अपना कोई कहीं भी ठिकाना नहीं
शाम होने को है
हम कहाँ जाएँगे
</poem>