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02:17, 16 अप्रैल 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
आए लौटि लज्जित नवाए नैन ऊधौ अब
::सब सुख-साधन कौ सूधौ सौ जतन लै ।
कहै रतनाकर गँवाए गुन गौरव औ
::गरब-गढ़ी कौ परिपूरन पतन लै ॥
छाए नैन नीर पीर-कसक कमाए उर
::दीनता अधीनता के भार सौं नतन लै ।
प्रेम-रस रुचिर बिराग-तूमड़ी में पूरि
::ज्ञान-गूदड़ी में अनुराग सौ रतन लै ॥105॥
</poem>