|रचनाकार=जगदीश व्योम
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-एक -
चंपा और चमेली बेला कचनार झूम उठे
धरती ने धानी चुनरी सी फहराई है
होने वाली आज ऋतुराज से सगाई है
-दो-
मस्त मंजीरा खनकाय रही मीरा औरु
रस की गगरिया रसखान ढरकाबै हैं
देवता के देवता को मनु ललचाबै है।
-तीन-
आयौ है बसंत घर नहिं सखि कंत आयौ
पंथ हेरि हारि गई हमारी है