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10:38, 16 अप्रैल 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=साग़र निज़ामी
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कैसा संत हमारा
गांधी
कैसा संत हमारा!
दुनिया गो थी दुश्मन उसकी दुश्मन था जग सारा ।
आख़िर में जब देखा साधो वह जीता जग हारा ।।
कैसा संत हमारा
गांधी
कैसा संत हमारा!
सच्चाई के नूर से उस के मन में था उजियारा ।
बातिन में शक्ती ही शक्ती ज़ाहर में बेचारा ।।
कैसा संत हमारा
गांधी
कैसा संत हमारा!
बूढ़ा था या नए जनम में बंसी का मतवारा ।
मोहन नाम सही था पर साधो रूप वही था सारा ।।
कैसा संत हमारा
गांधी
कैसा संत हमारा!
भारत के आकाश पे वो है एक चमकता तारा ।
सचमुच ज्ञानी, सचमुच मोहन सचमुच प्यारा-प्यारा ।।
कैसा संत हमारा
गांधी
कैसा संत हमारा!
</poem>