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समर निंद्य है / भाग ३ / रामधारी सिंह "दिनकर"
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17:44, 13 फ़रवरी 2007
स्वत्व माँगने से न मिले,<br>
संघात पाप हो जायें,<br>
बोलो धर्मराज, शोषित वे<br>
जियें या कि मिट जायें?<br><br>
Lalit Kumar
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