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बादरु गरजइ बिजुरी / कन्नौजी
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03:13, 19 अप्रैल 2010
सावन सूखि मई सब काया<br>
देखु भक्त कलियुग की माया,<br>
घर की खीर,
खुर–खुरी
खुरखुरी
लागइ<br>
बाहर की भावइ गुड़-लइया।<br>
काहू सौतिन...।।<br><br>
डा० जगदीश व्योम
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