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09:36, 24 अप्रैल 2010 इस तरह मेला घूमना<br />
हुआ इस बार<br />
न बच्चे के लिए मिठाई<br />
न घरवाली के लिए टिकुली-चूड़ी<br />
न नाच न सर्कस<br />
<br />
इस बार जेबों में<br />
सिर्फ हाथ रहे<br />
उसका खालीपन भरते<br />
<br />
इस बार मेले में<br />
पहुंचने की ललक से पहले पहुंच गयी<br />
लौटने की थकान<br />
<br />
एक खाली कटोरे के सन्नाटे में<br />
डूबती रही मेले की गूंज<br />
<br />
सिर्फ सूखा टहलता रहा<br />
इस बार मेले में.<br />
<br />