{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=अन्न हैं मेरे शब्द / एकांत श्रीवास्तव }}{{KKCatKavita}}<Poem>जब नींद में डूब चुकी है धरती<br />और केवल बबूल के फूलों की<br />महक जाग रही है<br />तब दूधिया चॉंदनी में<br />धान से लदी वह लौट रही है<br /><br />लौट रहे हैं अन्न<br />बचपन बीत जाने के बाद<br />बचपन को याद करते<br /><br />घंटियों की टुनुन-टुनुन<br />गॉंव की नींद तक पहुंच रही है<br />और सारा गॉंव<br />अगुवानी के लिए तैयार हो रहा है<br /><br />हिल रही हैं<br />अलगनी में टॅंगी हुई कन्दीलें<br />और चमक रहा है गॉंव का कन्धा<br /><br />एक मॉं के कण्ठ से उठ रही है लोरी<br />कि चॉंदी के कटोरे में भरा है दूध<br />और घुल रहा है बताशा<br /><br />बैलगाड़ी पहुंच जाना चाहती है गॉंव<br />दूध में बताशे के घुलने से पहले.<br /><br /poem>
--[[सदस्य:Pradeep Jilwane|Pradeep Jilwane]] 10:47, 24 अप्रैल 2010 (UTC)