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वसन्त / एकांत श्रीवास्तव

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=}}{{KKCatKavita‎}}<Poem>वसन्‍त आ रहा है <br />जैसे मॉं की सूखी छातियों में<br />आ रहा हो दूध<br /><br />माघ की एक उदास दोपहरी मे<br />मेंगेंदे के फूल की हॅंसी-सा<br />वसन्‍त आ रहा है<br /><br />वसन्‍त का आना<br />तुम्‍हारी ऑंखों में<br />धान की सुनहली उजास का<br />फैल जाना है<br /><br />कॉंस काँस के फूलों से भरे<br />हमारे सपनों के जंगल में<br />रंगीन चिडियों का लौट जाना है<br />वसन्‍त का आना<br /><br />वसन्‍त हॅंसेगा<br />गॉंव की हर खपरैल पर<br />लौकियों से लदी बेल की तरह<br />और गोबर से लीपे<br />हमारे घरों की महक बनकर उठेगा<br /><br />वसन्‍त यानी बरसों बाद मिले<br />एक प्‍यारे दोस्‍त की धौल<br />हमारी पीठ पर<br /><br />वसन्‍त यानी एक अदद दाना<br />हर पक्षी की चोंच में दबा<br />वे इसे ले जायेंगे<br />जाएँगेहमसे भी बहुत पहले<br />दुनिया के दूसरे कोने तक.<br />तक।<br /poem>
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