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पंजाब केसरी / श्यामलाल गुप्त 'पार्षद'
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14:27, 28 अप्रैल 2010
:::बल खाके भी न बल-रेखा एकाने दी।
जाने दी न आन-बान-शान तिल-भर भी उसकी,
:::
जानबूझ करके अपनी जान चली जाने दी।
'''रचनाकाल : स्वातन्त्र्य पूर्व
</poem>
अनिल जनविजय
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