Changes

<Poem>
किनारे के पेड़ वही हैं
बस थोड़े सयाने हो गये गए हैं
ब्‍याह करने लायक बच्‍चों की तरह
पहले से ज्‍यादा ज़्यादा चुप हैं तपस्‍वी बरगदहवा चलने पर सिर्फ उकसी जटायेंसिर्फ़ उसकी जटाएँ
लहराती हैं कभी-कभी
घर वही हैं
लेकिन कुछ गिर गये गए हैंकुछ बन गये गए हैं नयेनए
इन पुराने रास्‍तों को
वैसी ही महीन और मुलायम है रास्‍ते की धूल
पांव पाँव पड़ते ही उठती हैजैसे चौंककर पूछती हो-भैया!कहां कहाँ रहे इतने दिन?</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,881
edits