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आषाढ़ तो आया / जीवन शुक्ल
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04:24, 4 मई 2010
ओ रे पहुना रे घन !
कमरव की आँखें हैं
भरी भरी
।
हो उठी झरबेरी
हरी हरी।
</poem>
डा० जगदीश व्योम
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