Changes

}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
'''गुजरात में बेकरी में लोगों को जिंदा जलाए जाने पर'''
<Poem>
<h1>
सुनो अदीब
</h1>
अदीब !
सुनना चाहोगे क्या तुम
मांग रही है मेरी रूह जवाब
उसी दिन से अदीब
जब मेरे जिस्म ज़िस्म के टुकड़े-टुकड़े करके
झोंक दिया गया था बेकरी में
में कैसे करूं करूँ खुलासा
वहशियों का वहशीपन
उनकी नाफर्मानियों नाफ़र्मानियों और कुकृत्यों काकी कि किस तरह दरिंदों ने
त्रिशूल घोंपा
अब्बू की अंतड़ियों में
जान की फजीहत बन गया किस तरह
जब उसे कसकर बांधा गया
उनके मुंह मुँह पर
काट दिया स्तनों को
तब दूध नहीं खून की नदियाँ बहीं थीं अदीब
मेरे जिस्म को हैवानियत का शिकार बनाया
और भोगलिप्सा के बाद ....
मैं आखिरी आख़िरी चीज़ थी जिसे
भूना गया बेकरी में
देख सकते हो अदीब
आज भी वहां वहाँ जाकरजहां जहाँ बिखरी पड़ी हैं अम्मी कि टूटी चूड़ियाँअब्बू के गले का ताबीजताबीज़
मेरी उन किताबों का ढेर
जिनमें मैंने पढ़ी थीं
मुझे सुनो
मुझे भी सुनो...!!!
................. रचनाकाल : 16/08/.अगस्त 2002(गुजरात नरसंहार में बेकरी में लोगों को जिंदा जलाए जाने पर)
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits