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झर गई कली / सुमित्रानंदन पंत
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11:19, 10 मई 2010
<poem>
:झर गई कली, झर गई कली!
चल-सरित-पुलिन पर वह विकसी,
उर के सौरभ से सहज-बसी,
सरला प्रातः ही तो विहँसी,
:
रे कूद सलिल में गई चली!
आई लहरी चुम्बन करने,
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