[[दोहे / बनज कुमार 'बनज']]
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{{KKRachnaKKParichay |चित्र=|रचनाकारनाम=बनज कुमार 'बनज'’बनज’ |उपनाम=|जन्म=|जन्मस्थान=जयपुर, राजस्थान, भारत|कृतियाँ= |विविध=|अंग्रेज़ीनाम=Banaj Kumar Banaj|जीवनी=[[बनज कुमार ’बनज’ / परिचय]]
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<poem> शायद तुमने बाँध लिया है ख़ुद को छायाओं के भय से, इस स्याही पीते जंगल में कोई चिन्गारी तो उछले । रहे शारदा शीश पर, दे मुझको वरदान।गीत, गजल, * [[दोहे लिखूं, मधुर सुनाऊं गान। हंस सवारी हाथ में, वीणा की झंकार,वर दे मां मैं कर सकूं, गीतों का श्रृंगार। मां शब्दों में तुम रहो, मेरी इतनी चाह,पल पल दिखलाती रहो, मुझे सृजन की राह। मां तेरी हो साधना, इस जीवन का मोल,तू मुझको देती रहे, शब्द सुमन अन्मोल। अधर तुम्हारे हो गये, बिना छुये ही लाल।लिया दिया कुछ भी नहीं कैसे हुआ कमाल। मां तेरा मैं लाड़ला, नित्य करूं गुणगान।नज र सदा नीची रहे, दूर रहे अभिमान। मां चरणों के दास को, विद्या दे भरपूर,मुझको अपने द्वार से, मत करना तू दूर। सुनना हो केवल सुनूं, वीणा की झंकार।चुनना हो केवल चुनूं, मैं तो मां का द्वार। मौन पराया हो गया, शब्द हुये साकार,नित्य सुनाती मां मुझे, वीणा की झंकार। मां मुझको कर वापसी, भूले बिसरे गीत,बिना शब्द के जिन्दगी, कैसे हो अभिनीत।/ बनज कुमार 'बनज']]